Showing posts with label U.P. S.P. B.S.P. Third front. Show all posts
Showing posts with label U.P. S.P. B.S.P. Third front. Show all posts

Tuesday, March 20, 2012

राजनितीक मूल्य बनाम जोड़ तोड़ की राजनिती

उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को मिला स्पष्ट बहुमत उभरते हुए राष्ट्रीय राजनितीक परिदृश्य की झांकी हैI आज उत्तर प्रदेश, बिहार और तमिलनाडू इन ३ बड़े राज्यों मे कांग्रेस पुरी तरह से हाशिये पर आ गयी हैI वही आंध्र प्रदेश में वह जबरदस्त हार की कगार पर है और गुजरात, छत्तीसगढ़ तथा ओडिशा में उसका भविष्य अन्धकार में हैI महाराष्ट्र तथा पश्चिम बंगाल में उसे राष्ट्रवादी कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के सहारे ही आने वाले दिनों में सत्ता में बने रहना होगा जहाँ जनता के पास भारतीय जनता पार्टी का विकल्प भी मौजूद हैI कांग्रेस के खिलाफ गैर-भाजपा प्रादेशिक पार्टियाँ चुनावों मे अच्छा प्रदर्शन कर रही हैI इसका मतलब साफ़ है की जिस विचारधारा के बीज राममनोहर लोहिया ने बोये थे वह अपनी जड़े फैला रही हैI लेकिन लोहियावादी विचारधारा का एक भी विकल्प राष्ट्रीय स्तर पर उभरकर क्यों नहीं आ पाता है? दर असल, भारत की सामाजिक विविधता का सम्मान और अधिकार लोहियावादी विचारधारा का एक केंद्र बिंदु रहा हैI इसके चलते उसे एक ही राजनितीक दल या एक ही राजनितीक परिवार के अधिकार क्षेत्र में सीमित कर देना संभव नहीं हैI लोहियावादी राजनीती के केन्द्रीकरण की कोशिशे सामाजिक और राजनितीक सत्ता के विकेंद्रीकरण के लोहियावादी सिद्धांत के खिलाफ जाने वाली हैI आजादी के बाद कई साल तक भारत में राज्यसंस्था और लोकतान्त्रिक सरकार इन के बीच आम जनता फर्क नहीं करती थीI इसलिए, भारत की एकता और अखंडता बनाये रखने के लिए एक ही राजनितीक पक्ष की सरकार चुनकर देना जनता उचित समझती थीI अब यह बात साफ़ हो रही है की भारत की राज्यसंस्था काफी मजबूत है और राजनितीक अनिश्चता का बुरा असर राज्य संस्था की स्थिरता पर पड़ने की सम्भावनाये न के बराबर हैI प्रादेशिक अस्मिता की सोच देश के विभाजन में तब्दील हो सकती है यह कांग्रेसी प्रचार अब फिका होने लगा हैI दक्षिण में द्रविड़ी आन्दोलन, आसाम का छात्र आन्दोलन या पंजाब के खालिस्तानी आन्दोलन की वजह से देश विभाजीत होने का डर दिखाकर कांग्रेस १९८० के दशक तक तो वोट बटोर पाती थी, पर अब यह स्पष्ट है की केंद्र में किसी भी गठबंधन की सरकार रहे या कोई भी प्रधान मंत्री बने, भारत की राज्यसंस्था अखंडता के मुद्दे पर कोई समझोता नहीं कर सकती हैI परिणामत: जनता आर्थिक उन्नती और सामाजिक न्याय इन मुद्दो को प्राथमिकता दे रही हैI उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की हार का एक सबक यह भी है की सिर्फ सामाजिक न्याय का मुद्दा अब सत्ता में बने रहने के लिए पर्याप्त नहीं हैI बिहार में लालू प्रसाद यादव की राजनीती हाशिये पर आने की सबसे बड़ी वजह यही है की आर्थिक उन्नती के पहलू को उन्होंने दरकिनार कर दिया थाI आज अखिलेश यादव के सामने जो ३ सबसे बड़ी चुनौतियाँ है वह यही है की राज्य में कानून और व्यवस्था बनाये रखे, सामाजिक समता के आन्दोलन में बाधा न आने दे और जनता की आर्थिक उन्नती की योजनाये अमल में लायेI
इस परिदृश में समाजवादी पार्टी तथा लोहियावाद का प्रतिनिधित्व करनेवाली अन्य प्रदेशो की राजनितिक दलों को गरीबी निर्मूलन को अपना केन्द्रीय मुद्दा बनाने की जरूरत हैI जिस तीसरे या चौथे मोर्चे की चर्चा बार-बार होती रहती है वह न तो किसी एक पार्टी के इर्द गिर्द खड़ा होने वाला है और न ही किसे एक नेता के पीछे लामबंद होने वाला हैI लेकिन कुछ मुलभुत मुद्दों की अगुवाई में वह निश्चित ही खडा हो सकता हैI जिसमे शीर्ष पर गरीबी निर्मूलन ही हो सकता हैI इसके अलावा सामाजिक न्याय, कानून और व्यवस्था तथा धर्मनिरपेक्षता यह अन्य ३ पहलू इसमे जुड़ने चाहिएI यदी इन ४ उद्देशो के प्रती समर्पित होकर कोई राजनितीक ताकत उभरती है तो देश भर में बिखरे हुए वाम आन्दोलन और दलों को भी इसमे शामिल होने का मौका मिल सकता हैI विचारधारा और उद्देशो के बगैर किसी भी पार्टी का लम्बे समय तक अस्तित्व बना रहना या किसी नए मोर्चे की विशात बिछाना संभव नहीं हैI केवल वोट और सीटों के जोड़ तोड़ के समीकरण से पर्यायी विकल्प खड़े नहीं हो सकते हैI अगले आम चुनावों के बाद, वह समय पर हो या जल्दी, नितीश कुमार, मुलायम सिंह, बीजू पटनायक , जयललिता यह सारे कद्दावर नेता राष्ट्रीय राजनीती के केंद्र में होंगे. तब तक क्या इन नेताओं मे और उनकी अगुवाई वाले राजनितीक दलों मे कम से कम इतनी समझदारी उभर पायेगी की मुल्यों पर आधारित राजनिती करने से वह लम्बे समय तक राष्ट्रीय राजनीती में प्रभाव जमाये रख सकते हैI